मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

उर्दू शायरी में माहिया निगारी

प्रिय मित्रो !
पिछले कुछ दिनों से इसी मंच पर क़िस्तवार :"माहिया" लगा रहा था जिसे पाठकों ने काफ़ी पसन्द किया और सराहा भी। कुछ पाठको ने "माहिया" विधा के बारे में जानना चाहा कि माहिया क्या है ,इसके विधान /अरूज़ी निज़ाम क्या है ?
अत: इसी को ध्यान में रखते हुए यह आलेख : "उर्दू शायरी में माहिया निगारी" लगा रहा हूँ --मेरी इस कोशिश से शायद इस विधा पर कुछ रोशनी पड़ सके\

एक बात और...
चूंकि यह मंच कविता आदि के लिए निर्धारित है अत: आलेख का लगाना शायद मुनासिब न था ,मगर मज़बूरी यह है कि इसी मंच पर ’माहिया’ लगाता रहा अत: वज़ाहत/तफ़्सीलात भी यहीं लगाना मुनासिब समझा ---धृष्टता के लिए क्षमा-प्रार्थी हूँ

उर्दू शायरी में ’माहिया निगारी’[माहिया लेखन]

उर्दू शायरी में वैसे तो बहुत सी विधायें प्रचलित हैं जैसे क़सीदा,मसनवी,मुसम्मत,क़ता,रुबाई,तरजीह बन्द.तरक़ीब बन्द मुस्तज़ाद,फ़र्द,मर्सिया,हम्द,ना’त,मन्क़बत,ग़ज़ल,नज़्म वगैरह।परन्तु इन सबमें ज़्यादा लोकप्रिय विधा ग़ज़ल ही है । इन सब के अपनी अरूज़ी इस्तलाहत [परिभाषायें] है, अपने असूल है ,अपनी क़वायद हैं। ना’त के साथ तो सबसे ख़ास बात ये है कि ना’त नंगे सर नहीं पढ़ते ।ना’त पढ़ते वक़्त ,शायर सर पर रुमाल ,कपड़ा ,तौलिया या टोपी रख कर पढ़ते हैं। यह बड़ी मुक़द्दस [पवित्र] विधा है।
परन्तु हाल के कुछ दशकों से उर्दू शायरी में 2-अन्य विधायें बड़ी तेजी से प्रयोग में आ रहीं हैं- माहिया निगारी और हाईकू ।हाईकू यूँ तो जापानी काव्य विधा है मगर इस का प्रयोग ’हिन्दी’ और उर्दू दोनों में समान रूप से किया जा रहा है।अभी ये शैशवास्था में हैं।परन्तु माहिया उर्दू शायरी में बड़ी तेजी से मक़बूल हो रही है।
’माहिया’ वैसे तो पंजाबी लोकगीत में सदियों से प्रचलित है और काफी लोकप्रिय भी है जैसे हमारे पूर्वांचल में ’कजरी’ ’चैता’ लोकगीत हैं ।परन्तु माहिया को उर्दू शायरी का विधा बनाने में पाकिस्तान के शायर [जो आजकल जर्मनी में प्रवासी हैं] हैदर क़ुरेशी साहब का काफी योगदान है। माहिया का शाब्दिक अर्थ ही होता प्रेमिका [beloved ] और इसकी [theme] ग़ज़ल की तरह हिज्र-[-वियोग] ही है परन्तु आप चाहे तो और theme पे माहिया कह सकते है ,मनाही नहीं है ।बहुत से गायकों ने और पंजाब के आंचलिक गायकों ने माहिया गाया है। दृष्टान्त के लिए एक [link] लगा रहा हूँ जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ने गाया है जो पंजाबी में बहुत ही मशहूर और लोकप्रिय माहिया है http://www.youtube.com/watch?v=5CV6w01O95Q

"कोठे ते आ माहिया
मिलणा ता मिल आ के
नहीं ता ख़स्मा नूँ खा माहिया"

आप सभी ने हिन्दी फ़िल्म फ़ागुन [1958] [भारत भूषण और मधुबाला] संगीत ओ पी नैय्यर का वो गीत ज़रूर सुना होगा जिसे मुहम्मद रफ़ी और आशा भोंसले जी ने गाया है

" तुम रूठ के मत जाना
मुझ से क्या शिकवा
दीवाना है दीवाना

यूँ हो गया बेगाना
तेरा मेरा क्या रिश्ता
ये तू ने नहीं जाना

यह माहिया है ।
दरअस्ल माहिया 3-मिसरों की उर्दू शायरी में एक विधा है जिसमें पहला मिसरा और तीसरा मिसरा हम क़ाफ़िया [और हमवज़्न भी] होते हैं और दूसरा मिसरा हमकाफ़िया हो ज़रूरी नहीं । दूसरे मिसरे में 2-मात्रा [एक सबब-ए-ख़फ़ीफ़] कम होता है।
डा0 आरिफ़ हसन खां जो उर्दू के मुस्तनद अरूज़ी और शायर हैं जो मुरादाबाद [उ0प्र0] में क़याम फ़र्माते हैं ।डा0 साहब उर्दू साहित्य जगत और शैक्षिक जगत में एक नामाचीन हस्ती है,आप ने उर्दू में दर्जनों किताबें लिखीं और अवार्ड प्राप्त किए हैं। [शायद मेरी उर्दू आशनाई देखते हुए] बतौर-ए-सौगात आप ने अपनी एक किताब ’ख़्वाबों की किरचें’ [माहिया संग्रह] की एक लेखकीय प्रति बड़ी मुहब्बत से मुझें भेंट में किया है

यह किताब उर्दू में है और इस में 117 माहिया संकलित है। अपने हिन्दीदां दोस्तों की सुविधा के लिए इस किताब को मैंने बड़े शिद्दत-ओ- शौक़ से हिन्दी में ’लिप्यन्तरण’[Transliteration] किया है और डा0 साहब से नज़र-ए-सानी भी करा लिया है। ।आप ने बड़ी ख़लूस-ओ-मुहब्बत से इस बात की इजाज़त दे दी है कि हिन्दी के पाठकों के लिए इसे मैं अपने ब्लाग [www.hindi-se-urdu.blogspot.in] पर सिलसिलेवार लगा सकता हूं
माहिया के बारे में चन्द हक़ायक़ उन्हीं किताब से [जो उन्होने तम्हीद [प्राक्कथन/भूमिका]के तौर पर लिखा है हू-ब-हू दर्ज-ए-ज़ैल [निम्न लिखित] है
चन्द हक़ायक़ [कुछ तथ्य]

माहिया दरअस्ल पंजाब की अवामी शे’री सिन्फ़ [साहित्यिक विधा] है।उर्दू में इसे मुतआर्रिफ़ [परिचित] कराने का सेहरा [श्रेय] सरज़मीन पंजाब के एक शायर हिम्मत राय शर्मा के सर है जिन्होने फ़िल्म ’ख़ामोशी’ के लिए 1936 में माहिया लिख कर उर्दू में माहिया निगारी का आग़ाज़ किया।
इस के तक़रीबन 17 साल बाद क़तील शिफ़ाई ने पाकिस्तानी फ़िल्म ’हसरत’ के लिए 1953 में माहिए लिखे।क़मर जलालाबादी ने 1958 में फ़िल्म ’फ़ागुन’ के लिए माहिए लिखे। इस के बाद चन्द और फ़िल्मों के लिए भी शायरों ने माहिए लिखे जो काफी मक़बूल [लोकप्रिय] हुए।लेकिन माहिए लिखे जाने का ये सिलसिला चन्द फ़िल्मों के बाद मुनक़तअ [ख़त्म] हो गया और बीसवीं सदी की आठवीं औए नौवीं दहाई [दशक] में माहिया शो’अरा [शायरों] की अदम तवज्जही [उपेक्षा] का शिकार रहा । लेकिन सदी की आख़िरी दहाई माहिया के हक़ में बड़ी साज़गार साबित हुई और एक बार फिर शो’अरा ने माहियों की तरफ़ न सिर्फ़ तवज्जो दी बल्कि माहिया निगारी एक तहरीक [आन्दोलन] की शकल में नमूदार [प्रगट] हुई। गुज़िश्ता [पिछले] पाँच-छ: साल की मुद्दत में शायरों की एक बड़ी तादाद इस सिन्फ़ की तरफ़ मुतवज्ज: [आकर्षित] हुई है। माहिया निगारी की इस तहरीक में जर्मनी में मुक़ीम [प्रवासी] पाकिस्तानी शायर हैदर क़ुरेशी की कोशिशों को बहुत दख़ल है और बिला शुबह [नि:सन्देह] बहुत से शायर इन की तहरीक पर ही इस सिन्फ़ की तरफ़ मुतवज्ज हुए। वजह जो भी ,बहरहाल गुज़िश्ता 5-6 साल में मुख़तलिफ़ [विभिन्न]अदबी रिसाईल ने [साहित्यिक पत्रिकाओं ने] माहिये पर मज़ामीन [कई आलेख ] शायअ [प्रकाशित]किए। कुछ ने माहिया नम्बर [विशेषांक] और माहिए पर गोशे [ स्तम्भ ] निकाले और माहिए की शमूलियत [शामिल करना] तो अब तक़रीबन हर एक अदबी रिसाले में होती ही है।
माहिये के सिलसिले में एक बहस अभी नाक़िदीन[ आलोचकों] और शो’अरा में जारी है कि इस का दुरुस्त वज़न क्या है? बाज़ [कुछ लोगों ] के नज़दीक [ और अक्सरीयत [बहुत लोगों ] का यही ख़याल है] कि माहिया का पहला और तीसरा मिसरा हम वज़न [और हम क़ाफ़िया भी] होते हैं जबकि दूसरा मिसरा इन के मुक़ाबिले में एक सबब-ए-ख़फ़ीफ़ कम होता है । लेकिन बाज़ के नज़दीक तीनों मिसरों का वज़न बराबर होता है। बहर हाल अक्सरीयत के ख़याल को तर्जीह [ प्रधानता] देते हुए माहिया के का दुरुस्त वज़्न पहले और तीसरे मिसरे के लिए फ़एलुन् ,फ़एलुन् .फ़एलुन् /फ़एलान्] मुतदारिक मख़बून /मख़बून मज़ाल] और दूसरे मिसरे के लिए फ़ेलु .. फ़ऊल्.. फ़अल्/फ़ऊल् [मुतक़ारिब् असरम् मक़्बूज़् महज़ूफ़् /मक़सूर्] है। इन दोनों औजान [वज़्नों] पर बित्तरतीब [क्रमश:] तकसीन और तख़नीक़ के अमल हैं। मुख़तलिफ़ मुतबादिल औज़ान [वज़न बदल बदल कर विभिन्न वज़्न के रुक्न] हासिल किए जा सकते हैं [तफ़सील [विवेचना ] के लिए मुलाहिज़ा कीजिए राकिम उस्सतूर [इन पंक्तियों के लेखक] की किताब ’ मेराज़-उल-अरूज़’ का बाब माहिए के औज़ान]। अकसर-ओ-बेशतर[प्राय:] शायरों ने इन औज़ान में ही माहिए कहे हैं
राकिम-उस्सतूर को माहिए कहने का ख़याल पहली बार उस वक़्त आया जब ’तीर-ए-नीमकश’ में तबसिरे [समीक्षा] के लिए बिरादर गिरामी डा0 मनाज़िर आशिक़ हरगानवी ने अपनी मुरत्तबकर्दा[सम्पादित की हुई] किताब ’रिमझिम रिमझिम’ इरसाल की।इस पर तबसिरे के दौरान दिल में ख़्वाहिश पैदा हुई कि चन्द माहिये लिखे जाएं । चुनांचे [अत:] चन्द माहिए लिखे और ’तीर-ए-नीमकश’ अप्रैल 1997 के शुमारे [अंक] में शामिल किए।फिर उन्हीं की फ़रमाइश पर ’कोहसार’ के लिए चन्द माहिए लिखे।
इस वज़्न में ऐसी दिलकशी है कि राक़िम-उस्सतूर[इन पंक्तियों के लेखक] के नज़दीक एक मख़सूस [ख़ास] क़िस्म के जज़्बात की तर्जुमानी के लिए इस से ज़ियादा मौज़ूँ [उचित] कोई दूसरी हैयत नहीं।बहरहाल गुज़िश्ता दिनों जो चन्द माहिए मअरज़े वजूद में आए उन्हीं मे से कुछ नज़र-ए-क़ारईन [पाठकों के सामने ] हैं। ख़ाशाक [घास-फूस] के इस ढेर में शायद एक-आध ऐसी तख़्लीक़ [रचना] भी हो जो क़ारईन [पाठकों] के दिल को छू सके।

आरिफ़ हसन ख़ान
मुरादाबाद
----------------------------
उर्दू शायरी में माहिया के लिए निम्न बुनियादी औज़ान मुकर्रर किए गये हैं

फ़एलुन् ,फ़एलुन् .फ़एलुन् [22 22 22
फ़एलुन् ,फ़एलुन् .फ़ा [22 22 2]
फ़एलुन् ,फ़एलुन् .फ़एलुन् [22 22 22 ]
डा0 आरिफ़ हसन खां साहब ने अपनी किताब ’मेराज़-उल-अरूज़;[उर्दू में ] में माहिया के निज़ाम-ए-औज़ान पर काफी तफ़सील से लिखा है बुनियादी वज़न पर तख़्नीक़ के अमल से पहले और तीसरे मिसरे [हमक़ाफ़िया और हमवज़न भी] के लिए 16 औज़ान और दूसरे मिसरे के लिए 8 औज़ान मुक़र्रर किए जा सकते हैं ठीक वैसे ही जैसे रुबाई के लिए 24-औज़ान मुक़र्रर किए गये हैं।
यह विधा उर्दू शायरी में इतनी तेजी से मक़बूल हो रही है कि अब तो कई शायर इस पर तबाआज़्माई [कोशिश] कर रहे हैं । नमूने के तौर पे कुछ माहिया दीगर शायरों के लगा रहा हूँ जिससे आप लोग भी आनन्द उठायें
कहा जाता है कि सबसे पहला माहिया ,हिम्मत राय शर्मा जी ने एक फ़िल्म के लिए 1936 में लिखा था

इक बार तो मिल साजन
आ कर देख ज़रा
टूटा हुआ दिल साजन
---------
जनाब हैदर क़ुरेशी साहब का [जिन्हें उर्दू शायरी में माहिया के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है] का एक माहिया है

फूलों को पीरोने में
सूई तो चुभनी थी
इस हार के होने में
--------
एक माहिया हरगानवी साहिब का है
रंगीन कहानी दो
अपने लहू से तुम
गुलशन को जवानी दो

यहाँ यह कहना ग़ैर मुनासिब न होगा कि माहिया निगारी में शायरात [महिला शायरों ]ने भी तबाआज़्माई की है 1-2 उदाहरण देना चाहूंगा
आँगन में खिले बूटे
ऐसे मौसम में
वो हम से रहे रूठे
-सुरैया शहाब

खिड़की में चन्दा है
इश्क़ नहीं आसां
ये रुह का फ़न्दा है
--बशरा रहमान

मंच के पाठकों के लिए आरिफ़ खां साहब की किताब[ख़्वाबों की किरचें] से नमूने के तौर पर चन्द माहिया लगा रहा हूँ जिससे आप लोग भी लुत्फ़-अन्दोज़ हों
1
ऎ काश न ये टूटें
दिल में चुभती हैं
इन ख़्वाबों की किरचें
--------
2
मिट्टी के खिलौने थे
पल में टूट गए
क्या ख़्वाब सलोने थे
-------------------
3
आकाश को छू लेता
साथ जो तू देती
क़िस्मत भी बदल देता
-----------------
4
पिघलेंगे ये पत्थर
इन पे अगर गुज़रे
जो गुज़री है मुझ पर
-----------------
5
वो दिलबर कैसा है
मुझ से बिछुड़ कर भी
मेरे दिल में रहता है

अस्तु

यार ज़िन्दा सोहबत बाक़ी
आनन्द पाठक
09413395592

[

मंगलवार, 22 दिसंबर 2015

"सैनिक पत्नि की व्यथा"

सैनिक की पत्नि अपनी सखी से
अपनी व्यथा कहती है
सुन आलि सावन की बूँदे,विरह अगन भड़काती हैं
घायल जियरा हूक उठे,जब याद पिया की आती है
चले गये सीमा पर लड़ने,मुझे अकेला छोड़ गये
बीता बरस नाआयेमिलने,आशा मेरी तोड़ गये
होली के रंग उन बिन फीके,सूनी रात
दीवाली की
मेहन्दी का भी रंग चढा ना,गयी
तीज हरियाली भी
काजल बिन्दिया कंगन झुमके,नित सोलह श्रिन्गार करूँ
दरवाजे पर बैठ दिवस निशि,ठंडी ठंडी आह भरुं
ग्रीष्म शरद हेमंत शिशिर,ऋतुयेँ अबअब अब मुझको भायें ना
मौसम आये चले गये पर ,साजन मेरे आये ना
अब तो आंखोँ के आँसू भी डुलक डुलक कर सूख गये
ऐसा क्या अपराध हुआ जो भाग्य हमारे रूठ गये
रोम रोम मेरा पिया पुकारे. पल पल उनको याद करूँ
एक बार पिया मिलन करादो, रब से ये फ़रियाद करूँ
प्रियतम तो आये नाआलि,पाती उनकी आयी है
पाती मे प्रियतम ने अपने, दिल की व्यथा सुनाई है
प्रिया तेरे बिन इक इक पल,बरसों के मुझे समान लगे
तुझसे मिलने की आस लिये,नैना मेरे दिन रात जगे
तेरे कुसुमित अलकों की महक,की याद मुझे
तड़पाती है
छूना उन सुर्ख कपोलों को ,सिहरन मन मे उठ जाती है
तेरे अधरों की लाली को,बिन्दिया ,कुमकुम को याद करूँ
कंगन खनके पायल छनके
तेरी छवि से दिल आबाद करूँ
मैं जल्दी मिलने आऊँगा ,तुम जरा निराश नहीं होना
तुम ही तो मेरी शक्ति हो,अस्तित्व ना तुम अपना खोना
मेरे भारत की सीमा पर ,दुश्मन ने हमला बोला है
नफ़रत का जहर फिजाओं मे,दुष्टो ने फ़िर से घोला है
उनसे मै दो दो हाथ करूँ,जरा सबक उसे सिखलाऊँ तो
भारत माँ का मैं वीर लाल ,उसकी औकात बताऊँ तो
दुश्मन का शीश काट मुझको,माँ के चरणो मे चढाना है
हाथों मे लिये तिरंगा,वन्दे मातरम कहते जाना है
भारत की पावन भूमि पर ,जब चारों ओर अमन होगा
उस दिव्य समय मे प्रिय तुम्हारा मेरा मधुर मिलन होगा
यदि मैं शहीद हो जाऊँ तो,दुख तुमको नही मनाना है
मुझे विदा शान से करना ,वन्दे मातरम कहते जाना है
श्यामा अरोरा

सोमवार, 21 दिसंबर 2015

देश की मिट्टी हमारी बुलंदियाँ चढने लगी

देश की मिट्टी हमारी बुलंदियाँ चढने लगी
पर इधर भी देखिए मुफलिसियाँ बढने लगी

सच है कि हम खुदमुखतार हैं नहीं अब भी
अखबार क्यों तरक्कियों की अफवाहें गढने लगी

जब भी कुछ आवाम ने अपनी हक माँग ली
इन नेताओं की भ्रष्ट सूरतें क्यों बिगड़ने लगी

गूफ्तगू होने लगी खामियों पर अंजुमन में
नुक्स सारी पार्टियाँ एक दूसरे पर मँढने लगीं

कुछ देर पहले जिन लोगों ने कैरोसीन डाली थी
अब देखो बुझाने आ गए जब धुँआ उड़ने लगी

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

वो सामने मेरे ...........




वो सामने मेरे नजर मुझको नहीं आता
जब भी मिला दरिया मिला सागर नहीं आता
 
उसे देखा नहीं लेकिन दिल में रहा तो था
सफर में कहीं वो मील का पत्थर नहीं आता
 
सुनता हूॅ खुदा मेरा फलक पर है जमाने से
वह क्यों मेरे सामने उतरकर नहीं आता
 
ऐ आदमी इस जहाॅ में खून न कर अब
पता है आदमी फिर कभी मरकर नहीं आता
 
जो औरों को दीये फिरते तोअफा भलाई का
कालीन मिलते हैं कभी कंकड़़ नहीं आता
 
मंजिल के तरफ तू खुद चल मेरे साथी
मुकद्दर है, मुकद्दर किसी के घर नहीं आता


बुधवार, 16 दिसंबर 2015

चन्द माहिया : क़िस्त 25


:1:
टूटा जो खिलौना है
ये तो होना था
किस बात का रोना है

:2:
नाशाद है खिल कर भी
प्यासी है नदिया
सागर से मिल कर भी

:3:
कुछ दर्द दबा रखना
आँसू हैं मोती
पलको में छुपा रखना

:4:
इतना तो बता देते
क्या थी ख़ता मेरी
फिर चाहे सजा देते

:5:
बस हाथ मिलाते हो
आसाँ है ,लेकिन
रिश्ता न निभाते हो

-आनन्द.पाठक-
09413395592

गुरुवार, 10 दिसंबर 2015

चन्द माहिया :क़िस्त 24

माहिया :  क़िस्त 24

:1:

ये इश्क़,ये कूच-ए-दिल
दिखने में आसाँ
जीना ही बहुत मुश्किल

:2:

दिल क्या चाहे जानो
मैं न बुरा मानू
तुम भी न बुरा मानो

  :3:
सच कितना हसीं हो तुम
चाँद किधर देखूं
ख़ुद माहजबीं हो तुम

:4:
जाड़े की धूप सी तुम
मखमली छुवन सी
लगती हो रूपसी तुम

:5:
फिर लौट गया बादल
बिन बरसे घर से
भींगा न मिरा आंचल

-आनन्द पाठक
09413395592

रविवार, 6 दिसंबर 2015

चन्द माहिया ;क़िस्त 23

चन्द माहिया : क़िस्त 23
:1:
रिश्तों की तिजारत में
ढूँढ रहे हो क्या
नौ फ़स्ल-ए-रवायत में

:2:

कुछ ख़ास नहीं बदला
छोड़ गई जब से
अब तक हूँ नहीं सँभला

:3:
ये ख़ून बहा किसका
मैं क्या जानू रे !
कुर्सी से रहा चिपका

:4:
अच्छा न बुरा जाना
दिल ने कहा जो भी
बस वो ही सही माना

:5:
वो आग लगाते है
अपना भी ईमां
हम आग बुझाते हैं

-आनन्द.पाठक-
09413395592

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

गीत "ये धरा राम का धाम है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)


रम रहा सब जगह राम है।
ये धरा राम का धाम है।।

सच्चा-सच्चा लगे,
सबसे अच्छा लगे,
कितना प्यारा प्रभू नाम है।
ये धरा राम का धाम है।।

नाम जप लो अभी,
राम भज लो सभी,
लगता कोई नहीं दाम है।
ये धरा राम का धाम है।।

वो खुदा-ईश्वर,
सबको देता है वर,
वो ही रहमान है श्याम है।
ये धरा राम का धाम है।।

वो अजर है अमर,
सब जगह उसका घर,
सबके करता सफल काम है।
ये धरा राम का धाम है।।

बुधवार, 25 नवंबर 2015

हास्य कलाकार अभय सिंह ‘बंटू’ ने टीवी शो ‘चिड़ियाघर’ में इंट्री मारी

उत्तर प्रदेश का प्रतापगढ़ जिला किसी से पहचान का मोहताज नहीं है। यहां की प्रतिभाओं ने राजनीति से लेकर अभिनय के क्षेत्र तक अपनी बुलंदी का झंड़ा गाड़ रखा है। प्रतापगढ़ जिले के बिहारगंज भोजपुर निवासी हास्य कलाकार अभय सिंह ‘बंटू’ ने टीवी शो ‘चिड़ियाघर’ में इंट्री मारी है। सब टीवी चैनल पर आने वाले चिड़ियाघर के इस प्रोग्राम में वह मुख्य भूमिका में नजर आएंगें। इस कार्यक्रम की शुरूआत 30 नवम्बर से हो रही है। अभय की इस उपलब्धी से गांव में जश्न का माहौल है। सदर तहसील के बिहारगंज भोजपुर गांव निवासी अभय सिंह ने टीवी सीरियल में लाफ्टर प्रोग्राम से अपने कैरियर की शुरूआत की। हास्य कलाकार अभय ने लाफ्टर प्रोग्राम में अपनी प्रतिभा के माध्यम से लोगों को खूब गुदगुदाया और यह प्रोग्राम काफी चर्चित रहा। इसके बाद अभय ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पिटरशन हिल, लापतागंज, चितौड़ की रानी, सावधान इंडिया सहित कई टीवी सीरियलों में काम किया। इसी बीच सब टीवी पर चिड़ियाघर नाम प्रोग्राम में अभय को काम करने का मौका मिला। यह प्रोग्राम हंसी के हसगुल्ले व कॉमेडी से पूरी तरह भरा हुआ है। इसमें अभय मुख्य किरदार (लीड रोल) की भूमिका में नजर आएगा। चिड़ियाघर प्रोग्राम की लांचिंग 30 नवम्बर को होने जा रहा है। प्रोग्राम सब टीवी पर 30 नवम्बर से रात 9 से 9:30 बजे तक प्रत्येक सोमवार से शुक्रवार तक चलेगा। अभय की इस कामयाबी से परिजनों में खुशी का माहौल है। बातचीत के दौरान अभय सिंह ने बताया कि चिड़ियाघर सीरियल में वह मुख्य भूमिका में नजर आएंगें। उन्होंने सीरियल के कुछ अंश शेयर करते हुए कहा कि इसमें टामी तिवारी हीरो की भूमिका मुझे मिली है। इसमें वह करोड़पति परिवार से है। टामी तिवारी एक तितली पांडेय नामक लड़की को पंसद करता है, लेकिन वह उससे अपने प्यार का इजहार नहीं कर पाता, क्योंकि उसे प्यार का मतलब और उस लड़की को उसे अपना बनाने का तरीका नहीं मालूम है। ऐसे में उसे लड़की से मिलाने में उसका दोस्त पप्पी पांडेय उसका साथ देता है और उसे अपने पास लाने तरीका बताता है।



रविवार, 22 नवंबर 2015

मुलायम का आधुनिक ‘समाजवाद’

‘समाजवाद’ और ‘पूंजीवाद’ दोनों शब्दों के बीच पारस्परिक अन्तर्द्वन्द है। ‘समाजवाद’ में जहां समाज, संस्कृति, परम्परा और आम आदमी की बात झलकती है वहीं ‘पूंजीवाद’ में इसके ठीक विपरीत की क्रियाओं का आभास हुआ करता है। यूं तो ‘समाजवाद’ शब्द त्रेतायुग से प्रचलित है। भगवान राम का अभिमानी रावण के खिलाफ संघर्ष ‘समाजवाद’ का ही द्योतक माना गया। भगवान श्रीकृष्ण का कंस के आमनुषिक शासन के विरुद्ध छेड़ा गया अभियान भी ‘समाजवाद’ का रूप है। अगर यह ‘समाजवाद’ अपने स्वरुप को बदलकर ‘पूंजीवाद’ में परिवर्तित हो जाय और उसका आचरण करने वाले खुद को समाजवादी बोलें तो उसे एक नया नाम आधुनिक ‘समाजवाद’ दिया जा सकता है। 21 नवंबर 2015 की रात उत्तर प्रदेश के सैफई गांव में समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के 77वें जन्मदिन समारोह में जो देखने को मिला उसे देखकर मैने इसे मुलायम का आधुनिक ‘समाजवाद’ नाम देने की कोशिश की है। समाजवादी पार्टी के मुखिया खुद को डॉ. राम मनोहर लाहिया का अनुयायी बताते हैं। वह उनके समाजवादी विचारों से प्रभावित हैं। ऐसा लगता है कि आने वाले समय में डॉ. लोहिया का समाजवाद न अपनाकर मुलायम सिंह यादव के अनुयायी मुलायम के आधुनिक ‘समाजवाद’ की परंपराओं का अनुपालन करेंगे। बर्थडे केक काटने से पहले मुलायम सिंह यादव ने यह कहकर रही बात पूरी कर दी कि ‘समाजवाद का मतलब भूखा नंगा, नहीं बल्कि संपन्नता है।’ सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन किसी महापर्व से कम नही था। चारों ओर सुबह से रात तक जश्न का माहौल दिखाई दिया। गांव की सभी इमारतें बिजली की रंग-बिरंगी रोशनी के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के फूलों से सजाई गई थीं।  सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव का पैतृक आवास भी फूलों व बिजली की लाइटों से सजाया गया था और मुख्य सड़क से लेकर उनके घर तक तोरणद्वार भी बनाये गये थे। शाम के समय बिजली की रंग-बिरंगी सजावट बाहर से आने वाले मेहमानों के लिए काफी आकर्षण का केन्द्र रही। जिस तरह से सपा मुखिया के जन्मदिन पर जो ऐतिहासिक कार्यक्रम आयोजित किया गया था उसे देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो दीपावली का त्योहार फिर से आ गया हो। मुलायम सिंह यादव के इस जन्मदिन समारोह में कितने रुपये फूंके गए। यह रुपए कहां से आये। इस पर बात करना मूर्खता होगी क्योंकि इन सबके अपने-अपने तर्क  हैं। कोई इसे पार्टी के फंड का हिस्सा कहेगा तो कोई इसे खुद मुलायम परिवार की कमाई बताएगा। पर जवाब तो जनता को देना है कि वह किस समाजवादी विचारधारा की पोषक है। डॉ. लोहिया की या फिर मुलायम सिंह यादव के आधुनिक ‘समाजवाद’ की। मुलायम सिंह यादव के जन्मदिन समारोह के लिए सैफई में जो मंच बनाया गया था, उसकी लागत ढाई करोड़ रुपए आयी। इस कार्यक्रम में आये पांच सौ लोगों के लिए आगरा के होटल आईटीसी मुगल की कैटरिंग बुक की गई थी। लंदन से बग्घी मंगवाई गई थी, दस कुंतल फूल मंगाये गए थे। इसके अलावा क्या कुछ हुआ होगा? इसे आप स्वत: समझ सकते हैं। पानी की तरह इस समारोह में फूंके गए पैसे किसके हैं। जरा उत्तर प्रदेश की हालत देखिये। गन्ना किसान रो रहे हैं। नहरों में पानी नहीं मिल रहा है। किसानों की बिजली नहीं मिल पा रही है। पूरे उत्तर प्रदेश में सड़कों की हालत बद से बदतर है। गेहूं की फसल तैयार हुई तो बेमौसम बारिश ने किसानों के सपने तोड़ दिए। दर्जनों की संख्या में किसानों ने मजबूर होकर मौत को गले लगा लिया। धान की फसल सूखे की स्थिति के कारण अच्छी नहीं हो सकी। दंगों का जिक्र क्या करें। मुजफ्फर नगर और दादरी कांड तो सभी जानते हैं। अपराध चरम पर है। आये दिन पुलिस अधिकारी से लेकर आम आदमी तक की हत्या हो रही है। 1.72 लाख शिक्षामित्रों का भविष्य संकट में है। इन सब विपरीत परिस्थितियों के बावजूद सैफई में विलासिता का जश्न हो रहा है। अच्छा होता के इस कार्यक्रम में आरआर रहमान का शो कराने के बजाय प्रदेश भर में स्थानीय कलाकारों का शो करा दिया गया होता। इससे उन्हें ही कुछ पारिश्रमिक मिल जाता। अच्छा होता कि पानी की तरह फूंके गए इस पैसे को मुख्यमंत्री राहत कोष से सहायता मांग रहे फरियादियों को इमदाद दे दी गई होती। प्रतापगढ़ जिले के विकास खंड गौरा के सुरवां मिश्रपुर निवासी विजय यादव के पशुओं को किसी अपराधिक व्यक्ति ने जहर देकर मार डाला था। विजय यादव अपना परिवार चलाने के लिए मोहताज है। इन्हीं पशुओं से वह दूध बेचकर परिवार का भरण पोषण करता था। उसने मुख्यमंत्री से सहायता की फरियाद की थी, पर फरियाद बेकार गई। विजय की ही तरह कई और भी फरियादी है, जिसके ऊपर ‘सरकार’ की नजर नहीं पड़ी। वर्ष 2014 में मुलायम सिंह के करीबी आजम खां ने रामपुर में उनका शाही जन्मदिन मनाया था। इसके बदले में मुलायम सिंह यादव ने उन्हें मौलाना मोहम्मद अली जौहर विश्वविद्यालय की सौगात दी थी। इसी तरह मुलायम सिंह का समाजवादी परिवार हर साल सैफई महोत्सव के नाम पर अरबों रुपए नाच गाने पर फूंकता है। मुलायम सिंह यादव और उनके परिवार की इस गतिविधि पर किसी को आपत्ति करने का हालाकि किसी को कानूनी अधिकार नहीं है। मेरा भी आशय इस पर किसी प्रकार की आपत्ति करने का नहीं। मेरा आशय सिर्फ इतना है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रुप में अखिलेश यादव का फर्ज सिर्फ अपने पिता का विलासितापूर्ण जन्मदिन मनाने का ही नहीं, बल्कि उन सारे लोगों के पिता के जन्मदिन मनाने का माहौल बनाने की है जो उत्तर प्रदेश में निवास करते हैं। अकेले मुलायम सिंह यादव का जन्मदिन मनाकर वह कुछ महीने, साल तक खुश रह सकते हैं, पर उत्तर प्रदेश के लोगों के दिलों पर राज नहीं कर सकेंगे।