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बुधवार, 13 अगस्त 2014

यदि आग नहीं है गाने में-श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’

यदि आग नहीं है गाने में
प्रेषक-राहुल गुप्ता
--
फूलों की सुन्दरता का
तुमने है बहुत बखान सुना,
तितली के पीछे दौड़े,
भौरों का भी है गान सुना।

अब खोजो सौन्दर्य गगन
चुम्बी निर्वाक् पहाड़ों में,
कूद पड़ीं जो अभयशिखर से
उन प्रपात की धारों में।

सागर की उत्ताल लहर में,
बलशाली तूफानों में,
प्लावन में किश्ती खेने-
वालों के मस्त तरानों में।

बलविक्रमसाहस के करतब
पर दुनिया बलि जाती है,
और बात क्यास्वयं वीर-
भोग्या वसुधा कहलाती है।

बल के सम्मुख विनत भेंड़-सा
अम्बर सीस झुकाता है,
इससे बढ़ सौन्दर्य दूसरा
तुमको कौन सुहाता है ?

है सौन्दर्य शक्ति का अनुचर,
जो है बली वही सुन्दर;
सुन्दरता निस्सार वस्तु है,
हो न साथ में शक्ति अगर।

सिर्फ तालसुरलय से आता
जीवन नहीं तराने में,
निरा साँस का खेल कहो
यदि आग नहीं है गाने में।

 --
श्री रामधारी सिंह दिनकर

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